निम्नलिखित विधी-आधारित अनुच्छेद का अनुवाद हिंदी में करें –

समय – 30 मिनट

पूर्णांक - 30

As per Mahomedan law, the marriage of a Muslim boy with a girl who is an idolatress (1) or fire-worshipper (2) is not a valid marriage. Even if the marriage is registered under the Special Marriage Act, the marriage would be no more a valid marriage and it would be an irregular marriage. With this extremely startling observation, a Madhya Pradesh High Court (HC) judge recently dismissed a writ petition (3) jointly filed (4) under Article 226 of the Constitution by a Hindu woman and a Muslim man seeking protection of their legal right to get married under the nation’s civil marriages law.

The May 27, 2024 judgment smacks of a grotesquely confused understanding (5) of the Special Marriage Act (SMA), 1954. Originally enacted (6) eight decades earlier to facilitate inter-religious and inter-caste marriages, this Act required both parties to an intended marriage to declare their disaffiliation from religion (7). As the Constitution assertively protected citizens’ rights to equality and religious liberty, it was imperative for the State to re-enact this law sans (8) the requirement of abdication of religion. Hence, a new law was put on the statute book (9), enabling men and women professing different religions but wishing to get married to do this without having to give up their respective faiths, and without becoming followers of the same religion by conversion. Of course, the new Act offers the option of civil marriage also to parties belonging to the same community if they wish to avail its multifarious benefits.

Hints for Legal terms (Basic forms) as indicated: -

1. idolatress – हिंदु या मूर्तिपूजक

2. fire-worshipper – हिंदु या अग्निपूजक

3. writ petition – रिट याचिका

4. filed – दायर करना

5. smacks of a grotesquely confused understanding – विकृत और भ्रमित समझ पर तमाचा

6. enacted – अधिनियमित करना

7. disaffiliation from religion – धर्म से विच्युत या धर्म विलगाव

8. sans – के बिना

9. statute book – संविधान

हल -


इस्लामी कानून के अनुसार, किसी मुसलमान लड़के का किसी हिंदू लड़की से विवाह वैध विवाह नहीं है। भले ही वह विवाह विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत हुआ हो, वह विवाह वैध नहीं होगा और यह एक गैरकानूनी विवाह होगा। इस अत्यंत चौंकाने वाले अवलोकन ने, हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (एचसी) के एक न्यायाधीश ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हिंदू महिला और मुसलमान पुरुष द्वारा संयुक्त रूप से दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें देश के नागरिक विवाह कानून के तहत विवाह करने के उनके कानूनी अधिकार की सुरक्षा की मांग की गई थी।

27 मई 2024 का यह निर्णय विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए), 1954 पर विकृत और भ्रामक समझ का एक तमाचा है। मूल रूप से आठ दशक पहले अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों की सुविधा के लिए यह अधिनियम बनाया गया था, इस अधिनियम ने विवाह की मंशा रखने वाले दोनों पक्षों से उनके धर्म से अलग होने की घोषणा की मांग की थी। जिस तरह से संविधान ने नागरिकों के समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों की पूरजोर रक्षा की थी,  उसी तरह से राज्य के लिए यह अति आवश्यक था कि वह बिना धर्म-त्याग की आवश्यकता के ही इस कानून को अधिनियमित करें। इसलिए, एक नया कानून बनाया गया, जिससे विभिन्न धर्मों के अनुयायी पुरुषों और महिलाओं को बिना अपने-अपने धर्मों को छोड़े, और बिना धर्म परिवर्तन किये एक ही धर्म के अनुयायी बनकर विवाह कर सकें। बेशक, यह नया अधिनियम उन पक्षों को कानूनी विवाह के विकल्प को प्रदान करती है जो एक ही समुदाय से आते है और वे इसके बहुमुखी लाभों को उठाना चाहते है।