राजस्थान उच्च न्यायालय अनुवादक परीक्षा में विवरणात्मक अनुवाद पर दो प्रश्नपत्र 100-100 अंक के आते है। प्रत्येक प्रश्न पत्र में सामान्यतः तीन अनुच्छेद पूछे जाते है, जिसमें मुख्यतः विधि पर आधारित अनुच्छेद होते है। इस तरह के अनुच्छेद पर अभ्यास करना आवश्यक हो जाता है। अधिक से अधिक ऐसे अनुच्छेदों का संग्रह विविध स्रोतों से करें और अभ्यास करें। स्वमूल्यांकन के साथ ही साथ किसी विशेषज्ञ से अनुदित पाठ का मूल्यांकन करायें।

निम्नलिखित अनुच्छेद राजस्थान उच्च न्यायालय अनुवादक परीक्षा में पूछा गया प्रश्न है, जिसका अनुवाद किया जाना है। अनुवाद करने के पश्चात् दिए गए हल से मिलान करें और पता लगायें कि त्रुटि कहाँ आई और उसे कैसे ठीक किया जा सके। स्रोंत भाषा का लक्ष्य भाषा में अनुवाद दो या दो से अधिक तरीकों से किया जा सकता है। ध्यान रखें कि उचित शब्दों और वाक्य संरचना का प्रयोग करें। 

RHC Previous Year Legal Translation

हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करें -

“विधिसम्मत शासन” किसी सभ्य लोकतांत्रिक राजतंत्र के शासन का आधारभूत नियम है। हमारी सांविधानिक स्कीम विधि के नियम की संकल्पना पर आधारित है जिसे हमने अनुसरण किया है और जिसे हमने आत्म समर्पित किया है। प्रत्येक व्यक्ति विवादित रूप से, वैयक्तिक रूप से या सामूहिक रूप से विधि की सर्वोच्चता के अधीन है। कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बड़ा हो, कितना भी सशक्त हो और धनवान हो, विधि से ऊपर नहीं है, भले ही वह कोई पुरुष हो या स्त्री। विधिसम्मत शासन की स्थापना के लिए संविधान ने देश की न्यायपालिका को विशिष्ट कार्य सौपा है। विधिसम्मत शासन केवल न्यायालय द्वारा ही अपनी विशिष्टियों को वर्णित करता है और अपनी संकल्पना को स्थापित करता है। न्यायपालिका को प्रभावी रूप से और सच्ची भावना से जो उसे यथार्थतः सौपी गई है, अपने कर्तव्यों और कृतियों को पूरा करने के लिए न्यायालय की गरिमा और प्राधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए और इसका हर कीमत पर संरक्षण किया जाना चाहिए। स्वतंत्रता के लगभग 50 वर्ष पूरे होने के पश्चात् भी देश की न्यायपालिका सतत् संकट में है और इसे अंदर तथा बाहर से संकटापन्न किया जा रहा है। समय की आवश्यकता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए लोगों में पुनः विश्वास उत्पन्न किया जाए। इसकी निष्पक्षता और विधि के गौरव को कायम रखा जाए, इसकी संरक्षा की जाए और इसे पूर्ण रूप से लागू किया जाए। न्यायालय में विश्वास को, जो लोगों में है, मलिन करने, कम करने और किसी व्यक्ति के अपमान पूर्ण व्यवहार द्वारा इसे समाप्त करने के लिए किसी भी प्रकार से अनुज्ञात नहीं किया जा सकता। संस्था को अभ्याघात से बचाने के लिए एकमात्र हथियार न्यायालय की अवमान संबंधी कार्यवाही है जो न्यायिक प्रतिस्थापन का कवच है और जब भी इसकी आवश्यकता हो यह किसी भी व्यक्ति की गर्दन तक पहुंच सकता है चाहे वह कितना भी बड़ा या पहुंच के बाहर हो।

Rajasthan High Court Translator Exam

Maximum Marks – 40

Solution: -

“Rule of law” is the fundamental principle of governance in any civilized democratic set-up. Our constitutional scheme is based on the concept of the rule of law, which we have followed and dedicated ourselves to. Every individual, whether taken disputedly, individually or collectively, is subject to the supremacy of law. Any person, no matter how great, powerful, or wealthy he/she is, is not above the law, whether they are male or female. To establish the rule of law, the Constitution has entrusted the judiciary with specific responsibilities. The rule of law is characterized and established solely by the judiciary through its unique attributes. The judiciary's dignity and authority must be respected and protected at all costs to effectively and genuinely fulfill the duties and actions entrusted to it. Even after nearly 50 years of independence, the country's judiciary remains in constant crisis, and is under threat internally and externally. It is the need of the hour that trust should be restored among people in the judiciary’s freedom. Its fairness and the glory of the law should be maintained; it should be protected and fully implemented. Maligning and belittling the trust in the judiciary that people hold, and disrespecting behaviour of any individual for it cannot be permitted at any cost. To protect the institution from assault, the sole weapon is the proceedings for contempt of court, which serves as the shield of judicial substitution and it can reach out to any individual, no matter how big or far off the grip of the law he/she is.