1. मनुष्य स्वभावतः एकाकीपन पसंद नहीं करता. परिवार अथवा समाज में रहते हुए भी हमें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता अनुभव होती है जिससे हम हृदय की बात निसंकोच रूप से कह सकें. पारिवारिक मर्यादाओं के कारण पारिवारिक सदस्यों के सम्मुख हम अपने _(1)_ वास्तविक रूप में नहीं रख पाते. परंतु ह्रदय तो _(2)_ के लिए सदा व्याकुल रहता है. हमारा अंतःकरण जिससे _(3)_ नहीं रखता, जिसके सम्मुख खुल सकता है वही हमारा _(4)_ है. ऐसे मित्र प्रयत्न पूर्वक बनाए नहीं जाते _(5)_ ही मिल जाते हैं. हमारा मित्र भी _(6)_ अच्छा होता है. विपरीत विचारों वाले मित्र भी _(7)_ रूप में मिलते हैं. परंतु विचारों और स्थिति की _(8)_ घनिष्ठ मित्रता के लिए अत्यंत आवश्यक है. सामान्यतः _(9)_ विचारों की टकराहट अशांति को ही जन्म देती है. _(10)_ बढ़ाने वाले तो रास्ते चलते भी मिलेंगे पर कोई स्वार्थ परायण होंगे और उनका सरोकार अपनी सुख-सुविधा एवं विलासिता तक सीमित होगा. उपयुक्त मित्र मिलना जीवन की सार्थकता है.
Question : 1